
हाफिज-ए-कुरान बने आठ हाफिजों की उलेमाओं ने की दस्तारबंदी, नामवर उलेमा व शायर हुए शामिल
भुरकुंडा (रामगढ़)। मदरसा गुलशन-ए-रजा भुरकुंडा में रविवार की रात्रि जलसा-ए-दस्तारबंदी का आयोजन हुआ। जलसे की सदारत प्राचार्य मौलाना अनवर हुसैन ने की। जलसे में हिंदुस्तान के कई नामवर उलेमा व शायर शामिल हुए। इसमें पूर्णिया के मुफ्ती डॉ मुसब्बिर रजा, हजारीबाग के मौलाना गुलाम वारिस, शायर अख्तर कासिफ, शम्स तबरेज शामिल थे।
अपनी तकरीर में उलेमाओं ने मुस्लिम समाज से शिक्षा, राजनीति के क्षेत्र में आगे बढ़ने व अपने अधिकार के लिए संगठित होने की बात कही। दीनी मामलों पर कहा कि जिस दिल में कुरान की आयतें मौजूद न हो वह दिल वीरान की तरह होता है। जिस घर में कुरान की तिलावत न हो वह घर जंगल की तरह है।
कुरान घर की अलमारी में रखने के लिए नहीं बल्कि पढ़ने के लिए है। लेकिन आज लोग कुरान की तिलावत के लिए रमजान का इंतजार करते हैं। जबकि कुरान हमारी आखिरत और दुनिया दोनों को बेहतर बनाता है। दीनी तालीम पर कहा कि यह वह दौलत है, जो बांटने से और ज्यादा बढ़ता है।

यह हमारे लिए अल्लाह का इनाम है। दीनी तालीम सीखने और सिखाने वाले से अल्लाह और उसके रसूल राजी होते हैं। जो लोग मदरसों और मस्जिदों को आबाद करते हैं, अल्लाह उनके घरों को आबाद करता है। शायर अख्तर कासिफ ने मेरी मां मेरी बहनों न कभी छोड़ो हिजाब, पूछ लो फातिमा हाजरा से कि पर्दा क्या है पेश कर हिजाब का महत्व बताया।
उलेमाओं ने हाफिज-ए-कुरान बने आठ हाफिजों की दस्तारबंदी की। इसमें अब्दुल वाहिद, इरफान अंसारी, फुरकान बिस्मिल, दिलशाद अजमेरी, फिरोज अंसारी, साहिल रजा, मोशरर्फ अंसारी व अब्दुल वाहिद अंसारी शामिल हैं। जलसे का संचालन हसमत रजा साहिल ने किया। इस अवसर पर इमाम मुफ्ती तहसीन अशरफ, मुफ्ती मकसूद आलम, कारी अब्दुल रज्जाक, कारी रेयाजुल हसन सहित दर्जनों लोग मौजूद थें।