
प्रस्तावित पेसा नियमावली को संशोधन कर पेसा कानून 1996 के तहत लागू करने संबंधी सात सूत्री मांग पत्र सौपा
रिपोर्ट एस. कुमार
गिद्दी/सिरका। आदिवासी संघर्ष मोर्चा झारखंड के केन्द्रीय आह्वान पर जिला हजारीबाग के प्रखंड डाड़ी में आदिवासी संघर्ष मोर्चा और भाकपा-माले के नेतृत्व में एक मार्च करते हुए प्रखंड डाड़ी के माध्यम से करीब सात सूत्री मांग झारखंड सरकार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम एक ज्ञापन सुपुर्द किया जा रहा है। इसमें भाकपा माले के आरडी मांझी, अशोक गुप्ता ,गोविंद भुईयां आदि शामिल थे.ज्ञात हो कि झारखंड पंचायती राज अधिनियम को PESA संगत बनाने की मांग करती है।
PESA के सभी अपवादों और उपांतरणों अनुरूप झारखंड पंचायती राज अधिनियम, 2001 को संशोधित कर लागू किया जाए। झारखंड राज्य आदिवासियों के नाम से जाना जाता है झारखंड के रामगढ़, हजारीबाग सहित कई जिले, प्रखंड, पंचायत, गांव ऐसे हैं जहां आदिवासियों की संख्या बहुतायत है लेकिन उसे अनुसूचित क्षेत्र से बाहर रखा गया है
इसलिए प्रस्तावित पेसा नियमावली में इसे अनुसूचित क्षेत्र के दायरे में लाकर लागू किया जाए। PESA का मूल यही है कि अनुसूचित क्षेत्र में त्रि-स्तरीय पंचायत व्यवस्था के प्रावधानों का विस्तार होगा लेकिन आदिवासी सामुदायिकता, स्वायत्तता और पारम्परिक स्वशासन इस पंचायत व्यवस्था का मुख्य केंद्र बिंदु होगा एवं ग्राम सभा स्वयंभू होगा।
हालांकि झारखंड राज्य ने 2001 में झारखंड पंचायती राज अधिनियम (JPRA) बनाया, लेकिन इसमें PESA के अनुरूप ग्राम सभा व पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था सम्बंधित प्रावधान नहीं हैं। JPRA मुख्यतः पंचायत केन्द्रित है जबकि PESA के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में इसे ग्राम सभा केन्द्रित होना है।
उदाहरणस्वरूप ग्राम सभा की शक्तियों में सामुदायिक संसाधनों का मालिकाना, भूमि अधिग्रहण सम्बंधित अनुमति, गौण खनिज सम्बंधित अनुमति, गौण वन उपज पर स्वामित्व, अवैध भूमि हस्तांतरण रोकने की शक्ति, साहूकारी पर नियंत्रण, सामाजिक सेवा सम्बंधित सभी संस्थानों व कर्मियों पर नियंत्रण, स्थानीय बाज़ारों पर नियंत्रण आदि का ज़िक्र नहीं है।
इसी प्रकार आदिवासियों की रूढ़ी विधि व व्यवस्था, सामाजिक- धार्मिक रीति-रिवाज़ और सामुदायिक संसाधनों के पारंपरिक प्रबंधन, जो PESA का मूल है, सम्बंधित कोई भी प्रावधान JPRA में नहीं है। PESA नियमावली के ड्राफ्ट में कई गंभीर त्रुटियां हैं जिस पर संशोधन करने की आवश्यकता है।
प्रस्तावित पेसा नियमावली आदिवासी स्वायत्तता और प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार को सुनिश्चित और सुरक्षित नहीं करती है। उदहारणार्थ PESA के अनुसार ग्राम सभा को आदिवासी भूमि का गलत तरीके से हस्तांतरण को रोकने और ऐसी भूमि वापिस करवाने की शक्ति होगी। लेकिन ड्राफ्ट नियमावली में निर्णायक भूमिका उपायुक्त की है। इसी प्रकार सामुदायिक संसाधनों पर ग्राम सभा का मालिकाना अधिकार का स्पष्ट व्याख्या नही है।
साथ ही PESA नियमावली ड्राफ्ट में कई प्रावधानों का वर्तमान कानूनों के रेफरेन्स में व्याख्या किया गया है, जिसके कारण वे PESA के मूल भावना के विपरीत सामूहिक अधिकारों को सीमित करते हैं, जबकि PESA कानून के अनुसार सभी सबंधित राज्य व केंद्रीय कानूनों में संशोधन किया जाना है। इसके अलावा JPRA व प्रस्तावित PESA नियमावली में ऐसे अनेक बिंदु हैं जो आदिवासी सामूहिकता और स्वायत्ता को कमज़ोर करते हैं।
अनुसूचित क्षेत्र के ग्राम सभा के लिए कुल सदस्यों के महज़ एक तिहाई की उपस्थिति का कोरम रखा गया है। यह सामूहिक निर्णय प्रक्रिया को कमज़ोर करती है। साथ ही आदिवासियों के रीति-रिवाज़ अनुसार चलने वाले ग्राम सभा के सचिव के रूप सरकारी कर्मी (पंचायत सेवक) का रहना भी अनुचित है। ऐसी परिस्थिति में बिना JPRA को संशोधित किये एवं बिना प्रस्तावित नियमावली में सुधार किए नियमावली को अधिसूचित करना पांचवी अनुसूची क्षेत्र के समुदायों के संवैधानिक अधिकारों को कमज़ोर करना होगा।